“ भारतीय संस्कृति में पेड़ ” : प्रबोध चंदोल
“पेड़ और हम” -2 : प्रबोध चंदोल
5 days ago 31 Views
हमारी संस्कृति में हमारी जीवनशैली इस प्रकार की रही है कि हमारी सभी आवश्यकताएं प्रकृति से पूरी होती रहें और प्रकृति में उपलब्ध सभी संसाधन बिना किसी हानि के सदा विद्यमान भी रहें।
प्रबोध चंदोल
भारतीय संस्कृति में पेड़ के मायने
भारतीय संस्कृति में प्रकृति से मानव का रिश्ता अटूट रहा है। प्रकृति के सान्निध्य में रहते हुए हमारे ऋषि मुनियों ने प्रकृति के अनेक रहस्यों की खोज की। उन्होंने जंगल में पायी जाने वाली असंख्य जड़ी बूटियों पर परीक्षण किए और उनका मानव कल्याण के लिए उपयोग किया। धरती हो या अंतरिक्ष भारत के मनीषियों ने सभी क्षेत्रों में अध्य्यन किया और समय समय पर अपने अनुभवों को आमजन के हितार्थ उपयोग में लाने के लिए स्वंय अपने जीवन में उपयोग किया बल्कि अपने योग्य शिष्यों को हस्तांरित किया ताकि वे जनकल्याण के लिए उनका उपयोग कर सकें।
वनों में रहते हुए अनेक ऐसे लोगों ने वहां की वनस्पतिेयों पर भी असख्ंय प्रयोग किए और इन प्रयोगों के परिणामस्वरूप एकत्र किए गए ज्ञान को बाद में जनहित के उपयोग में लाया गया। चाहे वह ज्ञान वनस्पतियोें को औषधि के रूप में प्रयोग करने का हो या उनके पर्यावरणीय महत्व का हो। हमारी संस्कृति में हमारी जीवनशैली इस प्रकार की रही है कि हमारी सभी आवश्यकताएं प्रकृति से पूरी होती रहें और प्रकृति में उपलब्ध सभी संसाधन बिना किसी हानि के सदा विद्यमान भी रहें।
हमारे पूर्वज यह भलि-भांति जानते थे कि यदि पेड़-पौधे जिंदा रहेंगे तो हम भी जीवित रहेंगे और यदि ये नष्ट हो गये तो हमारा जीवन भी समाप्त हो जाएगा। मनुष्य और पेड़ों का जीवन अन्योनाश्रित है इसीलिए हमारी संस्कृति में वनस्पतियों को जिंदा प्राणी माना गया और कभी भी इनके अनावश्यक दोहन को स्वीकृति नही दी गई।
अनेक वनस्पतियों और पेड़ों का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में औषधियों के रूप में करते रहे हैं। और इसीलिए अनेक वृक्षों को तो हम देवतातुल्य मानकर उनकी उपासना भी करते हैं। यही कारण है कि हमारे ऋषियों ने अनेक वृक्षों का सम्बन्ध मानव के जीवन से जोड़ दिया ताकि मनुष्य स्वाभाविक रूप से अपना जीवन जीते हुए प्रकृति के संरक्षण का काम भी करता रहे। इस तरह से सभी नो ग्रह के अपने अपने अलग अलग वृक्ष हैं। इसी प्रकार से 27 नक्षत्र हैं जिनके अलग अलग 27 वृक्ष हैं तथा 12 राशियों के भी अपने अपने अलग अलग 12 वृक्ष हैं। जो मनुष्य अपने जन्म नक्षत्र वृक्ष या अपनी राशि के वृक्ष का सेवा भाव से पालन पोषण, वर्धन और रक्षा करता है, उस मानव के जीवन मेे पुण्य की प्राप्ति होकर हर प्रकार से कल्याण होता है।
यदि किसी मनुष्य के जीवन मेें किसी ग्रह का कुप्रभाव हो गया है तो यदि वह मनुष्य उक्त ग्रह के वृक्ष का पालन पोषण, वर्धन, रक्षण और उसके सान्निध्य में रहते हुए अपना आचरण शुद्ध कर लेता है तो उसके जीवन की सभी बाधाएं व कष्ट दूर हो जाते हैं, ऐसी मान्यता है।
इसी प्रकार पांच पवित्र छायादार वृक्षों के समूह को पंचवटी कहते हैं। धनवन्तरि वाटिका में अनेक औषधीय पेड़ों का रोपण, संरक्षण व संवर्द्धन किया जाता है। तीर्थंकर वाटिका में जैन तीर्थंकरों के केवली वृक्षों का रोपण किया जाता है।
जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हो चुके हैं और जिन वृक्षों के नीचे इन तीर्थंकरों को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उन्हें केवली वृक्ष कहा जाता है। जैन धर्म के आचार्यों का यह मानना है कि इन वृक्षों के नीचे तीर्थंकरों के ज्ञान प्राप्त करने से इनमें उनका अंश आ गया है, अतः इन वृक्षों की सेवा, दर्शन व अर्चना करने से संबन्धित तीर्थंकरों की कृपा प्राप्त होती है।
सिख धर्म में गुरूद्वारों व सरोवरों के निकट विविध उपयोगी वृक्षों को
लगाने की परंपरा रही है अतः गुरू सेवा में काम आने वाले धर्मस्थल के पास
स्थित वृक्ष समूहों को गुरू के बाग कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गुरू के
नाम पर लगाए गए वृक्ष अधिक फलते फूलते हैं तथा सर्वत्र लोकहितकारी होते
हैं।
अगले लेखों में हम आपको क्रमवार उपर्युक्त सभी वाटिकाओं के वृक्षों का अलग
अलग परिचय देते हुए पर्यावरण में उनके महत्व तथा उनके औषधीय गुणों के बारे
में भी बताएंगे।
क्रमशः
लेखक का परिचय
प्रबोध चंदोल, प्रकृति एवं पर्यावरण के लिए पिछले अनेक वर्षों से समाज में कार्यरत एक प्रकृति प्रेमी, जो अब तक अनेक संस्थाओं के साथ मिलकर विभिन्न क्षेत्रों में लाखों वृक्षों का रोपण कर चुका है। आपने ’पेड़ पंचायत’ नामक संस्था की स्थापना की है ताकि इस धरती पर विलुप्त होती वृक्ष प्रजातियों को बचाकर धरती के अस्तित्व की रक्षा की जा सके। इस प्रयास में उन औषधीय पौधों को बचाने का भी संकल्प है जो लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं। भारतीय संस्कृति में किस प्रकार पेड़ों के संरक्षण व संवर्द्धन की परंपरा है इसी पर उनके श्रंखलाबद्ध आलेख प्रस्तुत हैं।
“नवग्रह में चन्द्रमा और उसका पेड़़” – 3 : प्रबोध चंदोल
3 days ago 51 Views
आप जिस किसी भी ग्रह के दुष्प्रभाव को समाप्त करने या उसका शुभ फल प्राप्त करना चाहते हैं, उस ग्रह के प्रतीक वृक्ष का रोपण, सेवा-संरक्षण, दर्शन, आदि आपको करना है। ढाक के तीन पात जैसे मुहावरे आपने खूब सुने होगें, आज जानते हैं कि ढाक के तीन पत्तों का कितना महत्व है आपके स्वास्थ्य के लिए
प्रबोध चंदोल
भारतीय संस्कृति में पेड़ के मायने
“नवग्रह में चन्द्रमा और उसका पेड़़”:
“ढाक के तीन पात”
जैसा कि आप जानते ही हैं कि नवग्रह के 9 वृक्ष होते हैं जो अलग-अलग उन ग्रहों के प्रतीक माने जाते हैं। आप जिस किसी भी ग्रह के दुष्प्रभाव को समाप्त करने या उसका शुभ फल प्राप्त करना चाहते हैं, उस ग्रह के प्रतीक वृक्ष का रोपण, सेवा-संरक्षण, दर्शन, आदि आपको करना है। इससे उक्त ग्रह का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है और वह ग्रह आपके लिए शुभ फलदायी हो जाता है। जब हम इन वृक्षों का रोपण करते हैं तो तीन-तीन वृक्षों की तीन पंक्तियां बनाते हैं जिसमें चन्द्रमा की जगह पूर्व दिशा में सबसे दांए होती है।
इससे पहले के आलेख में हमने आपकी सुविधा के लिए नवग्रह का मानचित्र भी दिया था जिसे देखकर आप नवग्रह की स्थापना में चन्द्रमा की सही स्थिति जान सकते हैं। आपको मालूम ही है कि चन्द्रमा का वृक्ष ढाक या प्लाश है। आज हम आपको इस वृक्ष की उपयोगिता के बारे बताएंगे।
ढाक एक औसत ऊंचाई का एक पवित्र पेड़
है जिसकी एक टहनी में तीन पत्ते एक साथ जुड़े हुए आते हैं। इसका पत्ता काफी
चौड़ा होता है जिस पर भोजन करना या प्रसाद ग्रहण करना बहुत फलदायी माना
जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इस वृक्ष को ब्रह्माजी का प्रतीक माना गया
है। चन्द्रमा की शांति के लिए इस वृक्ष की लकड़ी को हवन में समिधा के रूप
में प्रयोग किया जाता है तथा
काष्ठ को जलावन के रूप में भी उपयोग किया जाता है। पारंपरिक रूप से इसके
पत्तों से दोने व पत्तल आदि बनाए जाते रहे हैं। इस पेड़ के फूल व बीज औषधि
के रूप में भी प्रयोग किए जाते हैं। इसके बीजों को नींबू के रस में पीसकर
लगी हुई जांघ या बगल में लगाने से यह बीमारी ठीक हो जाती है।
इसके बीजों में आंतों में पैदा होने वाले विषाणु या कीड़ों को नष्ट करने की क्षमता होती है। इसके लिए ताजा बीजों के रस को शहद के साथ दिया जाता है। यह योग दस्तावर भी होता है। शरीर के किसी अंग में झटके से, पैर में मोच से या गठिया के कारण सूजन अथवा जलन आदि में इसके फूलों का प्रयोग अति लाभकारी है। इसके लिए एक बर्तन में पानी को उबालना रख दें, जब पानी उबलने लगे तो बर्तन के ऊपर एक जालीनुमा ढक्कन रखकर उसपर ढाक के फूलों को रखकर पका लें और इन पके हुए पत्तों को प्रभावित अंग पर रखें।
इसके पत्तों का प्रयोग शरीर से विजातीय द्रव्य को बाहर करने और खून साफ करने के लिए भी जाता है। इसके लिए ताजे या सूखे हुए दोनों तरह के फूलों का प्रयोग किया जा सकता है।
सूखे फूलों को पीसकर पाउडर बना लें और एक या दो ग्राम प्रतिदिन ले सकते हैं। यौन रोग, आंतों के रोग या अल्सर में इसके फूलों का पाउडर बनाकर एक चम्मच या पांच ग्राम मिश्री और दूध के साथ दिन में दो बार लेना हितकारी होता है। मधुमेह में इस पाउडर की दो ग्राम की खुराक ली जा सकती है। यह वीर्यवर्धक होता है तथा जल्दी स्खलन की स्थिति में दो ग्राम की खुराक मिश्री मिलाकर दी जा सकती है परन्तु मधुमेह के रोगी मिश्री न मिलाएं।
इसके फूलों का रंग गहरा लाल होता है अतः होली के अवसर पर इसके फूलों से प्राकृतिक लाल रंग तैयार किया जाता है जिससे त्वचा को किसी भी प्रकार की हानि नही होती है। इसके पेड़ से गोंद भी तैयार होता है जो खाने के काम आता है। इस प्रकार यह एक बहुउपयोगी वृक्ष है। यह पेड़ पहले बहुतायत में पाया जाता था परंतु अब कम हो गया है। हम सब को इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसका रोपण करना चाहिए।
क्रमशः
लेखक का परिचय
प्रबोध चंदोल, प्रकृति एवं पर्यावरण के लिए पिछले अनेक वर्षों से समाज में कार्यरत एक प्रकृति प्रेमी, जो अब तक अनेक संस्थाओं के साथ मिलकर विभिन्न क्षेत्रों में लाखों वृक्षों का रोपण कर चुका है। आपने ’पेड़ पंचायत’ नामक संस्था की स्थापना की है ताकि इस धरती पर विलुप्त होती वृक्ष प्रजातियों को बचाकर धरती के अस्तित्व की रक्षा की जा सके। इस प्रयास में उन औषधीय पौधों को बचाने का भी संकल्प है जो लगभग विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी हैं। भारतीय संस्कृति में किस प्रकार पेड़ों के संरक्षण व संवर्द्धन की परंपरा है इसी पर उनके श्रंखलाबद्ध आलेख प्रस्तुत हैं।